महर्षि वाल्मीकि संध्या वंदन के लिए स्नान कर रहे होते हैं तभी एक क्रौंच पक्षी को एक व्याध तीर मार देता है और उसके विरह में उसका साथी पक्षी भी मर जाता है।
इस द्रवित करने वाली घटना से महर्षि वाल्मीकि क्रोधित होकर उस व्याध को श्राप देते हैं और संयोग से वह श्राप चार समान चरण युक्त एक श्लोक के रूप में उनके मुख से निकलता है-
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वं अगम: शाश्वती समा:।
यत क्रौंच मिथुनादेकम् अवधी: काम मोहितम्।।
भौतिक संसार का यह पहला छंदबद्ध श्लोक था जिसे गाया भी जा सकता है। ब्रह्मा जी के निर्देश और आदेश पर यहीं से रामायण महाकाव्य के सृजन का शुभारंभ होता है।
****
रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है –
नाना भांति राम अवतारा।
रामायन सत कोटि अपारा।।
अर्थात राम के अनेकानेक अवतार हैं और सैकड़ों करोड़ रामायण हैं।
इसी प्रकार रामकथा के वक्ता और श्रोता भी कई कई कहे गए हैं परंतु यह कथा जिसे महर्षि वाल्मीकि जी महाकाव्य के रूप में लिख रहे हैं ये वह कथा है जो महाज्ञानी काकभुशुंडि जी ने भगवान श्री हरि के वाहन गरुड़ जी को सुनाई थी।
*****
———————————————————————