वीर घातिनी लगी लखन को

मेघनाथ दोबारा अपनी दिव्य शक्तियों को जागृत कर के आक्रमण के लिए उपस्थित हुआ और उसने लक्ष्मण को ललकारा। ललकार सुनकर लक्ष्मण जी ने कहा कि भैया मुझे आज्ञा दीजिए मेरे शस्त्र अधीर हो रहे हैं। रामजी ने फिर उन्हें समझाते हुए कहा-

किंतु तुम इतने अधीर ना हो धीर वीर।उसका नाम मेघनाद है,गरजना तो मेघ का स्वभाव है। वीर सौमित्र उत्तेजित होकर नहीं, एक धीर योद्धा की भांति जाओ।

चुनौतियां और परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों परन्तु राम का धैर्य कभी विचलित नहीं होता,  ये हमें रामजी से सीखना चाहिए
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मेघनाथ फिर उसी आसुरी स्वभाव में आकर छल से ओझल होकर युद्ध करने लगता है छिपकर प्रहार करने लगता है।
यद्यपि लक्ष्मण उसके सारे प्रहार काट रहे थे फिर भी उन्होंने सम्पूर्ण राक्षस जाति का एक ही प्रहार से संहार करने के लिए रामजी से ब्रह्मास्त्र चलाने की आज्ञा मांगी।

रामजी ने कहा-नहीं लक्ष्मण! ब्रह्मास्त्र अत्यंत विनाशकारी है, शास्त्र उसके प्रयोग की आज्ञा हर परिस्थिति में नहीं देता।
अतः हमें उत्तेजित होकर धर्म युद्ध का मार्ग नहीं छोड़ देना चाहिए,अधर्म द्वारा प्राप्त की हुई विजय कभी कल्याणकारी नहीं होती।

यद्यपि उस समय सामान्य अस्त्र शस्त्रों से मेघनाथ को जीतना असंभव हो रहा था फिर भी मेघनाद के कारण दूसरे लोग ना मारे जाएं इसलिए राम जी ने ब्रह्मास्त्र के प्रयोग की अनुमति नहीं दी।  आज इन्हीं भावनाओं और विचारों के अभाव में हम देखते हैं कि युद्ध में बिना विचार किए विनाशकारी बमों, हथियारों द्वारा सेनाएं निर्दोष नागरिकों का विनाश करने में भी तनिक संकोच नहीं कर रहीं।
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Jai Shriram 🙏

Gepostet von Arun Govil am Sonntag, 24. Mai 2020

मेघनाथ आसमान से चारों ओर से बिजली की भांति बाणों की वर्षा कर रहा है। लखन लाल उसके हर प्रहार को बड़ी सजगता से काट रहे हैं।  मेघनाथ को ये आभास हो गया कि लक्ष्मण से जीतना असंभव है तो उसने वीर घातिनी शक्ति से लक्ष्मण पर प्रहार किया।

सिद्ध की हुई उसकी ये शक्ति, बरछी बनकर लक्ष्मण को बींध गयी और वे मूर्छित हो गए। इस हृदय विदारक दुर्घटना से सारा ब्रह्मांड विस्मित चिंतित और दुखित हो जाता है।
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उधर मेघनाद उन्माद में भरा रावण से कहता है- ‘कल युद्ध में राम का सिर काटकर लंका के मुख्य द्वार पर लगाऊँगा। राम पत्थरों का सेतु बांध कर यहां आया था, मैं उसके सैनिकों की लाशें यहां से अयोध्या तक बिछा दूंगा और उन्हें रौंदता हुआ अयोध्या जाऊंगा।’

मेघनाथ का यह बर्बर क्रूरतम विचार कुछ इंसानों में आज भी जीवित है। प्रमाण है हमारे बॉर्डर पर हमारे सैनिकों के काटे गए सिर।  विश्व भर में आए दिन होने वाली आतंकवादी घटनाएं जिनमें निर्दोष निरपराध नागरिकों की लाशें बिछाकर आतंकवादी उन पर जश्न मनाते हैं।

परंतु ऐसे पाप और अधर्म का अंत बहुत बुरा होता है उस युग में भी हुआ था और आज भी इनका अंत होकर रहेगा।
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रामजी सहित सारी वानर सेना शोक सागर में डूब गई है। उपचार का कोई उपाय किसी को नहीं सूझ रहा। विभीषण जी कहते हैं कि उपचार है भी तो वो असंभव है। इस पर हनुमान जी आत्मविश्वास में भरे हुए कह उठते हैं– -असंभव शब्द कर्महीन कायरों के शब्दकोश में हो सकता है, अंतिम श्वास तक कर्मरत रहना कर्मवीरों का कर्तव्य है।’ ‘उस असंभव उपाय को बताइए तो सही विभीषण जी ।असंभव को संभव बनाना हनुमान का काम है।’

विभीषण जी द्वारा बताए गए पते के अनुसार हनुमानजी शत्रु नगरी में घुसकर सुषेण वैद्य को उनके घर सहित उठा ले आते हैं।

रावण का राजवैद्य होने के कारन सुषेण, लक्ष्मण का उपचार करने से मना करते हैं और ये भी कहते हैं कि ‘मुझपर आपको विश्वास नहीं करना चाहिये, मैं शत्रु पक्ष का हूं आपके रोगी की हानि भी कर सकता हूं’। तो राम जी कहते हैं— वैद्य और रोगी के बीच तो केवल एक अलौकिक विश्वास की डोर होती है, वैद्यराज मैं अपने भाई को आप के सुपुर्द करता हूं। आप पर मुझे पूरा विश्वास है।

धर्म संकट से बाहर निकलकर वैद्यराज उपचार के रूप में हिमालय पर्वत से संजीवनी लाने की बात कहते हैं जो सबको असंभव लगता है परन्तु हनुमान हिमालय के लिए राम जी की आज्ञा और आशीर्वाद लेकर उड़ जाते हैं।।