भारतवर्ष, सदियों से एक समृद्धशाली देश, जहाँ की हवाओं में प्यार, अपनापन और वीरता के कई महान किस्से घुले हुए हैं. जब भी इसकी तरफ किसी दुश्मन ने आँख उठाई तो उसे ऐसा जवाब दिया गया कि, वो अपनी पहचान भूल गया. अगर कुछ लोगों ने भितरघात नहीं किया होता तो किसी दुश्मन की ताक़त नहीं थी वो कभी भी इस देश के किसी भी राज्य की सत्ता पे काबिज़ हो पता. लेकिन आपस की फूट ने दुश्मन को घर में घुसने का मौका दिया.
यहाँ हम एक ऐसे महान राजा की बात कर रहे हैं, जिसने अपने जीवन में कभी किसी के आगे सर नहीं झुकाया, दुश्मन कितना भी ताक़तवर हो उसे उसी की भाषा में जवाब दिया. इस महान राजपूत राजा का नाम था पृथ्वीराज चौहान.
मात्र 11 साल की उम्र में ही अजमेर की गद्दी सम्हालने वाले पृथ्वीराज चौहान ने दिल्ली की गद्दी भी साथ में ही सम्हाल ली थी. क्योंकि दिल्ली में उनके नानाजी का शासन था, जिनका कोई भी वारिस नहीं था. अपने जीवन में कभी कोई युद्ध नहीं हारने वाले पृथ्वीराज चौहान ने 16 बार जीत हासिल की और 17वा और एक आखिरी युद्ध मोहम्मद गोरी ने धोखे से जीत लिया. क्योंकि राजा जयचंद ने गद्दारी की थी और मोहम्मद गोरी का साथ दिया.
मोहम्मद गोरी, पृथ्वीराज चौहान को अफगानिस्तान ले गया और वहां उनकी आँखों में गरम सरिए डाल दिए. लेकिन फिर भी पृथ्वीराज चौहान ने शब्दभेदी बाण से मोहम्मद गोरी को मार दिया. और खुद भी अपने दोस्त चन्द बरदाई के साथ मौत को गले लगा लिया.
कहा जाता है कि, पृथ्वीराज चौहान शब्दभेदी बाण चलाने के महारथी थे. वह आवाज सुनकर तीर चला सकते थे. गौरी ने मृत्युदंड देने से पहले उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा. पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई ने गौरी को ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मारकर संकेत करने के लिए कहा. गौरी मान गया और उसने ठीक वैसा ही किया जैसा चंदबरदाई ने कहा था. उसके बाद चंदबरदाई ने पृथ्वीराज चौहान को अपनी कविता की पंक्तियों के माध्यम से सन्देश दिया कि, चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण। ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान ॥
पृथ्वीराज चौहान अपने, मित्र चंदबरदाई का इशारा समझ गए और उन्होंने उन्होंने तवे पर हुई चोट से अनुमान लगा लिया कि गौरी कितनी दूरी और किस दिशा में बैठा है. फिर क्या था उन्होंने जो बाण मारा वह सीधे गौरी के सीने में जा धंसा. इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक दूसरे का अंत करके आत्मबलिदान दे दिया.