कम लोग ही जानते होंगे पवित्र कुम्भ मेले के शुभारम्भ से जुड़ा ये इतिहास

कुंभ मेला, जो हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है. किन्तु कम लोग ही ये जानते होंगे, कि आखिर इतने पवित्र और धार्मिक आयोजन की शुरुआत कैसे हुई? क्या कारण है, कि कुम्भ के समय सभी सनातनी उसमें भाग लेकर पवित्र नदियों में स्नान करना चाहते हैं? तो आइये आपको इस महान आयोजन के इतिहास से परिचित करवाते हैं.

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कुंभ मेले का आयोजन हरिद्वार में गंगा, उज्जैन में शिप्रा, नासिक में गोदावरी और इलाहाबाद में त्रिवेणी संगम के तट पर किया जाता है. इनमें से प्रत्येक स्थान पर हर 12 साल में जबकि प्रयागराज में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ का आयोजन होता है. कुंभ मेले में देश-दुनिया के करोड़ों लोग आते हैं. यहीं कारण है कि कुंभ को दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन भी कहा जाता है. मान्यता है कि कुंभ के दौरान पवित्र नदियों में स्नान करने से जीवन के सारे पाप धुल जाते हैं.

कुंभ मेले के इतिहास की बात करें तो यह लगभग 850 साल पुराना है. मान्यता है कि आदि शंकराचार्य ने इसकी शुरुआत की थी. हालांकि कुंभ मेले को समुद्र मंथन से भी जोड़कर देखा जाता है. मान्यता है कि समुद्र मंथन से प्रकट होने वाले सभी रत्नों को देवताओं और राक्षसों ने आपस में बाँटने का निर्णय किया था, लेकिन जब समुद्र मंथन से अमृत निकला तो उसे पाने के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच संघर्ष शुरू हो गया. राक्षसों से अमृत को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अमृत से भरा पात्र अपने वाहन गरुड़ को दे दिया. राक्षसों ने जब गरुड़ से अमृत छीनने का प्रयत्न किया तो अमृत की कुछ बूंदे पात्र से गिर गई. इनमें से पहली बूंद प्रयागराज, दूसरी बूंद हरिद्वार, तीसरी बूंद उज्जैन और चौथी बूंद नासिक में जा गिरी. यही कारण है कि कुंभ के मेले का आयोजन इन्हीं चार स्थानों पर किया जाता है.

मान्यता है कि अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव और दानव में 12 दिन तक भयंकर युद्ध होता रहा. देवताओं के 12 दिन पृथ्वी पर 12 वर्ष के समान माने जाते हैं. यहीं कारण है कि हर 12 वर्षों बाद प्रत्येक स्थान पर कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है. उदहारण के तौर पर यदि पहला कुंभ हरिद्वार में होता है तो उसके 3 साल बाद दूसरा कुंभ प्रयागराज में और फिर 3 साल बाद तीसरा कुंभ उज्जैन में और फिर 3 साल बाद चौथा कुंभ नासिक में होता होगा.