अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण का कार्य अब बहुत तेज़ी से शुरू हो चुका है. हालांकि पत्थरों की तराशी का काम तो पिछले कई सालों या फिर ये कह सकते हैं दो दशक से ज्यादा समय से से चल रहा था. देश के दूर दराज के क्षेत्रों से अयोध्या में लाये गए ये पत्थर राम मंदिर निर्माण के काम में आ रहे हैं. राम मंदिर निर्माण के लिए भूमि का समतलीकरण हो भी चुका है. खंभों की पाइलिंग हो रही है अब जल्द ही मंदिर निर्माण के लिए राम जन्मभूमि की कार्यशाला में रखे पत्थरों को राम जन्मभूमि के परिसर तक पहुंचाया जाना है. ये पत्थर 90 के दशक से राम जन्मभूमि की कार्यशाला में रामलला के मंदिर निर्माण के निमित्त तराश कर रखे गए हैं. ये राम मंदिर के प्रथम तल के पत्थर हैं जो राम जन्मभूमि की कार्यशाला में रखे हैं.
इन पत्थरों को तराशने के लिए अयोध्या में ही एक कार्यशाला है, जो श्रीराम जन्मभूमि से 5 -6 किलोमीटर की दूरी पर है. अब इन पत्थरों को कार्यशाला से मंदिर परिसर तक पहुंचाने का कार्य किया जाएगा. चूंकि पत्थर बहुत भारी हैं, इसलिए इसकी तैयारी पूरी योजना बनाकर की गई है, जिसके लिए विश्व हिन्दू परिषद् और और श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के पदाधिकारियों ने मिलकर रोड मैप तैयार किया है. दो रास्ते इसके लिए चिन्हित किए गए हैं. एक रास्ता दीनबंधु नेत्र चिकित्सालय होते हुए नया घाट से हनुमानगढ़ी के सामने होते हुए संपर्क मार्ग से राम जन्मभूमि के परिसर में पत्थरों को प्रवेश कराया जाएगा. ये लगभग 4 किलोमीटर लंबा रास्ता है लेकिन इस रास्ते से ले जाने में भीड़भाड़ मिलेगी. दिन के समय इस रास्ते पर ट्रैफिक भी रहता है. ऐसे में रात के समय इस रास्ते का इस्तेमाल होगा और दिन के समय पंचकोशी परिक्रमा मार्ग से पत्थरों को ले जाया जाएगा. ये पत्थर साढ़े 5 किलोमीटर लंबे सफर के बाद रामलला के परिसर में पहुंचेंगे और इस रास्ते पर भीड़ भी नहीं होगी.
विश्व हिंदू परिषद के प्रांतीय मीडिया प्रभारी शरद शर्मा से प्राप्त जानकारी के अनुसार, राम जन्मभूमि न्यास की कार्यशाला में पत्थरों की तराशी का कार्य लगातार होता रहा है. मंदिर निर्माण के लिए 60 से 65% पत्थरों की तराशी का कार्य पूरा भी हो चुका है. राम मंदिर के पत्थरों को राम जन्मभूमि के परिसर में पहुंचाने के लिए यदि नया घाट क्षेत्र से ले जाते हैं तो 4 किलोमीटर और यदि परिक्रमा मार्ग से होकर संपर्क मार्ग होते हुए रामलला के परिसर में ले जाते हैं तो साढ़े 5 किलोमीटर की दूरी पड़ेगी. पत्थरों को रखने के लिए मंदिर परिसर के अंदर शेड का निर्माण भी होगा जहां पर इन तराशे गए पत्थरों को सुरक्षित रखा जा सके.