पवित्र पहाड़:विंध्याचल युगों-युगों से प्रणाम की मुद्रा में ही झुका हुआ है यह पहाड़

भारतीय संस्कृति में प्रकृति के सम्मान और पूजन का बड़ा महत्व है। इनमें नदियां, पहाड़, पेड़ और शिलाओं के भी पूजने की परंपरा रही है। ऐसे ही पूजनीय और पवित्र पर्वतों में से एक है विंध्याचल। देश के पश्चिम-मध्य में इसकी एक प्राचीन गोलाकार पर्वत माला है, जो उत्तर भारत और दक्षिण भारत को अलग-अलग दिखाने में सीमा का काम भी करती है। इस पर्वत माला का पश्चिमी छोर गुजरात में, पूर्वी छोर राजस्थान और मध्यप्रदेश की सीमा के नजदीक है। यह पहाड़ मध्यभारत से उप्र के मिर्जापुर में गंगा नदी तक फैला है। यह पर्वत अगस्त्य के साथ ही शरभंग और अनेक ऋषियों की तपस्या स्थली भी रहा है। विंध्याचल का धार्मिक के साथ ही भौगोलिक महत्व भी है।ImageSource

पुराणों के अनुसार इस पर्वत ने सुमेरू पर्वत से भी खुद को बड़ा दिखाने के लिए आकाश की ओर अपनी ऊंचाई बढ़ाते हुए सूर्य का मार्ग रोक दिया था, प्रकृति का असंतुलन होने के भय से पूरे ब्रह्मांड में देव, दानव और मानव सभी में हाहाकार मच गया था, इसके बाद विंध्याचल के गुरु ऋषि अगस्त्य ने इस समस्या का हल निकाला। जब ऋषि अगस्त्य विंध्याचल के पास पहुंचे तो उसने उनके चरणों में झुककर प्रणाम किया। ऋषि ने आशीर्वाद देकर कहा जब तक वे लौटकर नहीं आते, वह इसी प्रकार झुके रहो। इसके बाद वे लौटकर नहीं आए और आज भी विंध्याचल पर्वत वैसे ही झुका उनका इंतजार कर रहा है। नर्मदा के उत्तर तट पर अकतेश्वर ही वह जगह है जहां दक्षिण की ओर जाते हुए अगस्त्य ने विंध्याचल को बढ़ने से रोका था।

हिमाचल के समान विंध्याचल का भी धर्मग्रंथों एवं पुराणों में बड़े स्तर पर उल्लेख मिलता है। इस पर्वत से ही कालीसिंध, पार्वती, बेतवा, केन, सोन, तमसा, परवन व नेवज नदियां निकलती हैं। विंध्याचल का सबसे ऊंचा शिखर मध्यप्रदेश के अमरकंटक में है, जिसकी ऊंचाई 1,048 मीटर यानी 3,438 फीट है।

रोचक बात यह भी है मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के कुछ हिस्सों में फैले इसके हिस्सों को भारनेर की पहाड़ियां कहा जाता है। विंध्याचल का पूर्वी हिस्सा, जो सतपुड़ा से आकर मिलता है, उसे मैकल की पहाड़ी कहते हैं, जहां से नर्मदा नदी निकली है। झारखंड में पारसनाथ पहाड़ियों को इसी का हिस्सा माना जाता है। कैमूर पर्वत माला भी इसी का हिस्सा है। इन श्रेणियों में बहुमूल्य हीरे वाली एक पहाड़ी भी हैं। विंध्याचल की लंबाई लगभग 1086 किलोमीटर है। यह पहाड़ परतदार चट्टानों से बना है।

ImageSource

इस पहाड़ का उत्तर और पश्चिम का इलाका रहने लायक नहीं है, जो विंध्य और अरावली पहाड़ों के बीच है। यह दक्षिण से आती हुई हवाओं को रोकता है। विंध्याचल पहाड़ों के जंगल में सबसे प्रसिद्ध हैं सफेद शेर। माता विंध्यवासिनी को विंध्य की रानी कहा जाता है। मां विंध्यवासिनी का मंदिर उत्तरप्रदेश के मिर्जापुर में है, जो कि श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है। यह 51 शक्तिपीठों में से एक है।
भगवान श्रीराम से संबंध

विंध्याचल का संबंध भगवान राम से भी है। इसके अंचल में एक कुशावती नगरी थी। भगवान श्रीराम ने दक्षिण कौशल में कुश और उत्तर कौशल में लव का राज्याभिषेक किया था। कुशावती विंध्य अंचल में बसी थी। इसे उस समय दक्षिण कौशल कहते थे, जबकि वर्तमान में रायपुर-बिलासपुर क्षेत्र छत्तीसगढ़ माना जाता है। स्वयं श्रीराम ने यह नगरी कुश के लिए बसाई थी, जहां कुश ने गंगा को पार किया था, वह स्थाना चुनार (जिला मिजार्पुर उत्तर प्रदेश) के पास है। यहां गंगा एकाएक उत्तर-पश्चिम की ओर मुड़ कर बहती है और काशी में पहुंचकर फिर से सीधी बहने लगती है।

गंगा का स्पर्श-
विंध्यवासिनी धाम में गंगा विंध्याचल को छूती हुई निकलती है। यहां देवी सशरीर विराजित हैं, जबकि अन्य शक्तिपीठों पर सती के शरीर का एक-एक अंग गिरा है, इसलिए इस जगह का धार्मिक महत्व बहुत ज्यादा है। अन्य देवी धामों को शक्तिपीठ जबकि इसे सिद्धपीठ कहा जाता है। मान्यता हैं ये कृष्ण की बहन हैं। जन्म के बाद जब कंस ने इन्हें उठाकर पत्थर पर पटकने की कोशिश की तो वे उसके हाथ से छूटकर यहां आकर विराजित हो गर्इं। इनका मुख शिशु की तरह नजर आता है। इसी तरह उत्तरप्रदेश के बरेली के पास जामगढ़ के समीप विंध्याचल की प्राकृतिक शिव गुफा का अलग ही महत्व है। यह स्थान बरेली से लगभग 20 किमी है। इसे औघड़दानी यानी शिव की गुफा कहा जाता है। यहां का शिवलिंग स्वयंभू है।

ImageSource

इस प्रकार विंध्याचल पर्वत से जुड़ी धार्मिक कथाएं हमें यही संदेश देती हैं कि हम अपनी विरासत व धरोहरों का संरक्षण करें। यदि हमने ऐसा नहीं किया तो अगली पीढ़ी हमें माफ नहीं करेगी। इसके साथ ही विंध्याचल से यह भी सीखने को मिलता है कि वह अपने गुरु के सम्मान में युगों से झुका हुआ है। इतना विशाल और बलशाली होने के बावजूद विंध्याचल ने उनकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं किया।