विष्णु पुराण – स्वर्ग नर्क और अंतरिक्ष का वर्णन

अट्ठारह पुराणों में बहुत ही प्राचीन और बहुत ही महत्वपूर्ण पुराण है विष्णु पुराण। यह पुराण ऋषि पराशर द्वारा प्रकट किया गया है। इसके नायक भगवान विष्णु है। इसमें पाँचो महा तत्वों, समुद्र, सूर्य, पर्वत, देवताओं आदि की उत्पत्ति का वर्णन, मन्वंतरों, कल्पों के विभाग, सभी धर्मों, देव ऋषि- राज ऋषि के चरित्र एवं विशेषताएं आदि का विस्तृत वर्णन है। विष्णु प्रधान होकर भी यह पुराण विष्णु और शिव की एकात्मकता का प्रतिपादक है। मुख्य रूप से इस पुराण में श्री कृष्ण चरित्र और उनकी लीलाओं का वर्णन है परंतु साथ ही संक्षेप में श्री राम कथा का भी वर्णन मिलता है।

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विष्णु पुराण में विद्वानों द्वारा तेईस हजार श्लोक होने की मान्यता है परंतु वर्तमान में मात्र सात हजार श्लोक ही उपलब्ध हैं।
इस पुराण में पुराणों के पांचों लक्षण – सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वंतर और वंशानुचरित का वर्णन है। विष्णु पुराण के दो मुख्य भाग हैं – पूर्व भाग और उत्तर भाग।

पूर्व भाग:- विष्णु पुराण के पूर्व भाग को छह अंशो में बांटा गया है-
01प्रथम अंश
पूर्व भाग में पराशर जी ने मैत्रेय को छह अंश सुनाएं हैं। प्रथम अंश में पुराण की भूमिका, देवताओं की उत्पत्ति, समुद्र मंथन की कथा, दक्ष प्रजापति के वंश का वर्णन, ध्रुव तथा पृथु का वर्णन, प्राचेतस का उपाख्यान, प्रहलाद की कथा, ब्रह्मा जी द्वारा देवयोनि, तिर्यक योनि, मनुष्य योनि आदि के योग्य अधिकारियों को विभिन्न विभाग, पद और अधिकारों का वर्णन है।

02द्वितीय अंश
इस अंश में प्रियव्रत के वंश का वर्णन, पृथ्वी के सभी द्वीपों का वर्णन, भारतवर्ष सहित सभी वर्षों का वर्णन, पाताल लोक का वर्णन, नरकों का वर्णन, सात स्वर्गों का वर्णन, सूर्य आदि ग्रहों की स्थिति और गति का वर्णन, भरत चरित्र, मोक्ष के मार्ग का वर्णन, निदाघ और ऋभु का संवाद आदि वर्णित है।

03तृतीय अंश
विष्णु पुराण पूर्व भाग के तृतीय अंश में मन्वंतरों का वर्णन, वेदव्यास जी के अवतार की कथा, नरकों से बचने के उपाय और उद्धार की विधियों का वर्णन, सगर और और्ब के संवाद में सभी धर्मों का प्रतिपादन, श्राद्ध कल्प का वर्णन, वर्णाश्रम का वर्णन, धर्म सदाचार आदि का वर्णन तथा मायामोह की कथा आदि का वर्णन है।

04चतुर्थ अंश
इस अंश में सूर्यवंश की कथा, चंद्रवंश की कथा तथा पृथ्वी के अनेकानेक यशस्वी राजाओं का वृतांत वर्णित है।

05पंचम अंश
पूर्व भाग के पंचम अंश में श्री कृष्ण अवतार से संबंधित प्रश्न-उत्तर, गोकुल की कथा, श्री कृष्ण की बाल लीला के अंतर्गत पूतना आदि का वध, कुमार अवस्था की लीला के अंतर्गत अघासुर बकासुर आदि का वध, किशोरावस्था के अंतर्गत कंस का वध व मथुरा की लीला, युवावस्था के अंतर्गत द्वारका की लीलाओं का वर्णन, अनेकानेक दैत्यों का वध।
श्री कृष्ण के अनेकानेक विवाह प्रसंगों का वर्णन, द्वारकाधीश के रूप में अनेक दैत्य, दानव, शत्रुओं का विनाश और धरती की रक्षा, धर्म की स्थापना का वर्णन। अष्टावक्र जी का उपाख्यान भी इसी अंश में वर्णित है।

06षष्टम अंश
कलयुग का चरित्र, चार प्रकार की महाप्रलय का वर्णन, केशिध्वज द्वारा खाण्डिक्य जनक को ब्रह्म ज्ञान का उपदेश आदि प्रसंग वर्णित हैं।

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उत्तर भाग
विष्णु पुराण के उत्तर भाग में शौनक आदि द्वारा पूछे गए प्रश्न और उनके उत्तर में सूत जी द्वारा नाना प्रकार के धर्मोंपदेश और कथाओं का वर्णन है।

अनेकानेक पुण्य फलदाई व्रत, यम, नियम, धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र, वेदांत, ज्योतिष, वंश वर्णन के प्रसंग, विभिन्न स्तोत्र, मंत्र तथा सबका कल्याण करने वाली नाना प्रकार की विद्याओं का वर्णन है। वेदव्यास जी ने उत्तर भाग में वाराह कल्प का विस्तृत वर्णन किया है। विष्णु पुराण को भक्ति पूर्वक पढ़ने या सुनने को भी महा पुण्य फलदाई कहा गया है।
ॐ तत्सत