हर दिन हम सब ऐसी कई बातें सुनतें हैं, जिन्हें सुनकर लगता है कि ये हमारी प्रेरणा बन सकतीं और हम जीवन में सफल हो सकते हैं. कुछ लोग तो केवल मनोबल बढाने वाले वीडिओ देखते हैं, किताबें पढ़ते रहते हैं, और फिर भी उनकी जीवन में कोई बड़ा बदलाव नहीं होता. तो क्या सिर्फ motivation से जीवन में कामयाबी मिल जाती है?
ये एक बड़ा सवाल है. असल में होता ये है कि, जो व्यक्ति उपदेश सुनता है, वो उन्हें अपने जीवन में लागू करने के बजाय वो उपदेश दूसरों को सुनाने लगता है. और अपने जीवन में उनको क्षणिक मात्र भी नहीं अपनाता, पर जिन्हें वाकई कुछ करना होता है, वो लोग दूसरों के द्वारा सुनी हुई ज्ञान की बातों को दूसरों पर थोपने के बजाय अपने जीवन में उन पर अमल कर करना शुरू कर देते हैं, और उन्हें कामयाबी मिलने लगती है. और जो किसी की अच्छी बातें सुनना नहीं चाहते उन्हें दूसरों द्वारा कहीं गई हर बात उपदेश लगती है, और वो उन्हें या तो दुत्कार देते हैं, या उनका मज़ाक बना देते हैं.
अहंकार मानव मन का स्वभाव है, जो कभी कभी हमें दूसरों से मिलने वाले अच्छे ज्ञान को भी नहीं लेने देता, और हम सब अपने जीवन में बहुत अनमोल ज्ञान इसी वजह से हासिल नहीं कर पाते. कभी कभी इंसान स्वयं से ज्यादा विद्वान किसी को नहीं समझता, इसलिए अपने अलावा किसी की भी कही बात उसे तर्क लगती है, लेकिन जो इन बातों को सुन लेते हैं, उनका जीवन स्वयं तो महान बन ही बन जाता है, और अपने कर्मों से वह दूसरों का भी मार्गदर्शन करता है.
श्रीराम को अपने जीवनकाल में कई महान लोगों से ज्ञान प्राप्त करने का अवसर मिला, फिर चाहे वह बाल्यकाल में हो, या वनवास काल में, उनकी ज्ञान लेने की इच्छा के कारण ही उनका भाग्य उन्हें हर बार बड़े बड़े ज्ञानियों के समक्ष ले जाता था. और वो पूरे धैर्य के साथ वो ज्ञान ग्रहण करते थे.
तो दूसरी तरफ रावण जो खुद से बड़ा विद्वान किसी को नहीं समझता था, और अधर्म से रोकने के लिए उनकी पत्नी मंदोदरी, भाई विभीषण के अलावा कई लोगों ने उसे समझाने की कोशिश की लेकिन उसे सबकी बातें उपदेश लगीं, और उसने उन्हें दुत्कार दिया. जिसका परिणाम फिर उसे भुगतना पड़ा. इसलिए जीवन में किसी से मिले हुए ज्ञान का सदुपयोग करना चाहिए, और दूसरों का भी मार्गदर्शन करना चाहिए.