जब भगवान शिवजी के क्रोध से उत्पन्न हुआ एक विनाशकारी राक्षस

इस आधुनिक दुनिया में लोग इतने मॉर्डन हो गए हैं कि लोगों में थोड़ा भी सहन करने की क्षमता नहीं है. कई लोग हैं जो छोटी-छोटी बातों पर इतना गुस्सा होते हैं कि उन्हें बाद में पछतावा बहुत होता है. इस पछतावे से बचने के लिए उन्हें अपने आप पर धैर्य रखने की ज़रूरत है. आज के आर्टिकल में हम बात कर रहे हैं राजा इंद्र की. राजा इंद्र ने भगवान शिव को एक ऐसी बात कही जिससे शिव जी क्रोधित हुए और फिर इंद्र जान बचाने के लिए उन्हें भागना भी पड़ा.

 

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पूरी कहानी इस प्रकार है-
प्राचीन कथाओं के अनुसार राजा इंद्र को अपनी शक्ति पर सीमा से अधिक विश्वास था और यह विश्वास अभिमान में बदल गया. हद तो तब हो गई जब राजा इंद्र ने भगवान शिव से कहा कि मैं आपके जैसे ही शक्तिशाली पुरुष से युद्ध करना चाहता हूं. यहीं नहीं इंद्र ये भी भूल गए कि भगवान शिव ने उन्हें कई बार राक्षसों से सुरक्षित किया था. इंद्र की इस बात से शिव जी बहुत क्रोधित हुए, और शिव जी ने इंद्र को भस्म करने के लिए अपने तीसरे नेत्र से अग्रि को प्रकट किया. यह देख इंद्रदेव अपनी जान बचाने के लिए भागने लगे. इंद्र की जान बचाने के लिए देवगुरु बृहस्पति जी आगे आए. फिर शिव जी ने अपनी उस क्रोधाग्नि को समुद्र में फेंक दिया. उस अग्नि से समुद्र में एक बालक का जन्म हुआ, जिसका नाम जलंधर पड़ा.

मान्यताओं के अनुसार जलंधर बहुत शैतानी प्रवृत्ति का बच्चा था. एक बार ब्रह्माजी कहीं जा रहे थे तभी उन्हें एक बच्चे की रोने की आवाज सुनाई दी, जिसकी वजह से वे रुक गए और बच्चे की ओर गए, बह्माजी बालक उठाकर खिलाने लगे. इतने में उस बच्चे ने बह्माजी की दाढ़ी इतनी जोर से खींची, कि उनके आखों से आंसू बहने लगे, तब ब्रह्माजी ने इस बच्चे का नाम जलंधर रखा. आगे चलकर यह बालक असुर बना. कहा तो यह भी जाता है कि इस असुर ने उस समय सभी को पराजित कर दिया था.

पौराणिक कथाओं के अनुसार जलंधर का अंत करने के लिए सभी देवताओं ने योजना बनाई, और भगवान विष्णु जी की सहायता से शिव जी के हाथों ही उसका अंत हुआ.