महाभारत से बड़ा धर्मयुद्ध आजतक के इतिहास में कभी दोबारा नहीं हुआ, ये सच है कि, पांडव बहुत बलशाली थे, लेकिन कौरवों की सेना में भी एक से बढ़कर एक महारथी थे, जिनमें, भीष्म पितामह, गरु द्रोणाचार्य, सूर्यपुत्र कर्ण और अश्वथामा जैसे बलशाली योद्धा शामिल थे. और उनसे लड़ने के लिए अर्जुन को कई दिव्यास्त्रों की आवश्यकता पड़ी.
कहते हैं, जब अज्ञातवास के दौरान पांडव काम्यक नामक वन में अपना वनवास बिता रहे थे, उन्ही दिनों उनकी मुलाक़ात महर्षि वेदव्यास से हो गई. महर्षि वेदव्यास ने, अर्जुन से भगवान शिव की तपस्या करके उनसे पाशुपतास्त्र और दिव्यास्त्र लेने के लिए कहा. उसके बाद जंगल में जाकर अर्जुन भगवान शिव की कड़ी तपस्या करने लगे. भगवान शिव, अर्जुन की परीक्षा लेने के लिए एक भील का रूप धारण करके उनके सामने आ गए. और बातों ही बातों में उन्होंने अर्जुन के पराक्रम का भी बहुत अपमान किया. जब अर्जुन से अपना अपमान सहन नहीं हुआ तो उन्होंने उस भील को युद्ध के लिए ललकारा, और भीलरूपी शिवजी ने उस चुनौती को स्वीकार करके अर्जुन से युद्ध किया. उस युद्ध में भील ने अर्जुन को हारकर उनका धनुष भी उनसे छीन लिया. उसके बाद अर्जुन को समझ में आ गया कि, उनसे लड़ने वाला कोई साधारण मनुष्य नहीं हो सकता, और उन्होंने कहा, ‘हे भोलेनाथ मैंने आपको पहचान लिया है, आपने मुझे एक बालक के सामान दो घड़ी में पराजित करके मेरा अभिमान चूर चूर कर दिया’. उसके बाद अर्जुन के समक्ष भगवान शिव अपने असली रूप में आ गए, और उन्होंने अर्जुन को पाशुपतास्त्र के साथ दिव्यास्त्र भी प्रदान किये.
कहते हैं, अर्जुन के ऊपर भगवान भोलेनाथ से लेकर भगवान श्रीकृष्ण तक सभी की कृपा थी, इसलिए उनके पराक्रम का सामना करने का साहस बहुत कम योद्धाओं में था. और जो योद्धा उनका सामना करने के लिए आये वो भी धर्म और अधर्म की इस लड़ाई में धर्म के हाथों पराजित हुए.