रामायण और महाभारत दोनों ही बहुत महान ग्रन्थ हैं. और इन दोनों में ही कई ऐसे पात्र हैं, जिनकी कहानियाँ पूरी तरह हमें नहीं पता होती. महाभारत में 18 पर्व हैं. जिनके बारे सबको नहीं पता. महाभारत के ही वनवास के समय का एक पर्व है, जिसे वन पर्व कहा जाता है. उसकी एक कथा के अनुसार एक बार अर्जुन और महाबली भीम ने मिलकर दुर्योधन की जान बचाई थी.
कहानी कुछ इस तरह है कि, एक बार धर्मराज युधिष्ठिर द्वैत नामक वन में अपने सभी भाइयों के साथ यज्ञ कर रहे थे. और दुर्योधन, कर्ण, शकुनी और अपने भाइयों के साथ विशाल सेना लेकर गांवों का निरीक्षण करने के बहाने वहां जाता है. दुर्योधन का उद्देश्य था कि, वो किसी भी तरह पांडवों को परेशान करके उनके यज्ञ में व्यवधान डाल सके. और देवराज इंद्र दुर्योधन की इस मंशा को जान जाते हैं. और वो अपने एक गंधर्व चित्रसेन को आदेश देते हुए कहते हैं कि, दुर्योधन को पकड़ लो, क्योंकि वो अधर्म और अनीति का काम करने जा रहा है. चित्रसेन वहां जाकर दुर्योधन को परास्त करके उसे बंधक बना लेते हैं. उसके बाद दुर्योधन के वयोवृद्ध मंत्रीगण दौड़कर महाराज युधिष्ठिर के पास जाकर कहते हैं कि, महाराज इंद्र देव के आदेश पर चित्रसेन नाम के गन्धर्व ने दुर्योधन को पकड़ लिया है.
युधिष्ठिर मंत्रीगण से कहते हैं कि, मैंने इस यज्ञ को संपन्न करने का वचन लिया है, इसलिए मैं स्वयं नहीं जा सकता. फिर वो अपने भाइयों अर्जुन, भीम, नकुल और सहदेव से कहते हैं कि, जाओ और गन्धर्वों से युद्ध करके अपने भाई को और हमारे क्षत्रिय कुल की लाज को बचाओ. चाहे भले ही इसके लिए भीषण युद्ध करना पड़े. अर्जुन और भीम अपने भाई की बात सुनकर आश्चर्य से कहते हैं कि, दुर्योधन हमारा शत्रु है, नीच और पापी है, और आप उसे ही बचाने की बात कर रहे हैं. फिर युधिष्ठिर अपने भाइयों को समझाते हैं कि, शरण में आने वाले की रक्षा करने का बहुत महत्व होता है. और यदि शत्रु की रक्षा करके उसे बचाया जाए तो इसका पुण्य तो कई यज्ञों के पुण्य से भी बड़ा होता है.
ये सुनकर युधिष्ठिर के भाई संतुष्ट हो जाते हैं, क्योंकि वो जानते थे कि, धर्मराज युधिष्ठिर नीति शास्त्र के ज्ञाता हैं, और कोई भी बात बिना सोचे समझे नहीं कहते. उसके बाद सभी भाई चित्रसेन से भीषण युद्ध करते हैं. और उन्हें परास्त करके दुर्योधन को छुड़ा लेते हैं. तब चित्रसेन, कहते हैं, मैं तो आपकी रक्षा के लिए ही आया था. ये आपके ही यज्ञ में विघ्न डालने आया था. इसके बाद सभी भाई फिर से दुर्योधन को बंदी बनाकर युधिष्ठिर के पास ले जाते हैं. और जब उन्हें सब पता चलता है, तो वो मुस्कुराते हैं, और कहते हैं, दुर्योधन क्या कर सकता है, और क्या कर रहा है, ये उसका धर्म है. लेकिन हमारा धर्म क्या है, ये हमें पता होना चाहिए. इसके बाद दुर्योधन को आज़ाद कर दिया जाता है.