इस आधुनिक दुनिया में हम जहां धन को कमाने में लगे हुए हैं वहां धन तो आ रहा है पर सुख-चैन जा रहे हैं. और सुख-चैन कैसे न जाए? पैसे कमाने का तरीका ही गलत है. गलत तरीके व गलत नीयत से कमाया हुआ धन हमें कभी आगे नहीं बढ़ने देता.
इस आधुनिक दुनिया में हर कोई पैसे कमाने के लिए बहुत मेहनत कर रहा है और मूल सुविधाओं के लिए पैसे ज़रूरी भी हैं. इससे कोई इंकार नहीं कर सकता. लेकिन गलत तरीके से कमाए हुए धन से जो खुशी मिलती है वह मेहमान की तरह होती है. जो कभी भी आ सकती है और कभी भी जा सकती है.
गलत नीयत से कमाया हुआ धन जी का जंजाल बन जाता है. महाभारत के एक प्रसंग में भीष्म ने दौपदी को कुछ बातें बताई थीं. उस बात के जरिए समझने की कोशिश करते हैं कि अगर कोई इंसान छल से कमाए हुए पैसों से भोजन करता है तो उसका जीवन कैसा हो जाता है.
महाभारत में जब कौरव और पांडवों का युद्ध चल रहा था तब कौरवों के कई योद्धा पराजित हो चुके थे और भीष्म पीतामह जैसे योद्धा बाणों की शय्या पर लेटे थे. आखिरी समय के युद्ध विराम के बाद सभी पांडव और द्रौपदी भीष्म पितामह से मिलने के लिए गए. तब भीष्म पितामह सभी पांडवों को ज्ञान की बात बता रहे थे. तब द्रौपदी ने भीष्म पितामह से प्रश्न पूछा कि आज आप ज्ञान की बात कर रहे हैं जिस दिन मेरा चीर हरण हो रहा था तब भी आप वहां मौजूद थे फिर भी चुप रहे, मेरी मदद नहीं की. आखिर आप क्यों चुप थे?
इस प्रश्न के जवाब में भीष्म पितामह ने कहा “मुझे पता था कि एक दिन मुझे इस प्रश्न का सामना करना पड़ेगा. उस समय मैं दुर्योधन का दिया हुआ अन्न खा रहा था. और यह अन्न अधर्म से कमाया हुआ था. इस तरह के धन को जो भी खाता है उसका दिमाग काम करना बंद कर देता है. क्योंकि मैं उस धन को खा रहा था तो दुर्योधन के सामने मैं कुछ सोच नहीं पा रहा था. मेरी सोचने की क्षमता खत्म हो गई थी. मैं ये सब रोकना तो चाहता था पर दुर्योधन के अन्न ने मुझे रोक दिया.”
यह सुनकर द्रौपदी ने भीष्म पीतामह से पूछा कि फिर आज आप कैसे ज्ञान की बात कर रहे हैं?
इस प्रश्न के जवाब में भीष्म पितामह ने कहा, “ अर्जुन जैसे बड़े योद्धा के बाणों से मेरे शरीर का सारा खून बह गया, और ये खून दुर्योधन के अन्न से बना हुआ था. क्योंकि अब मेरे शरीर से यह खून निकल गया है, मैं उसके अन्न से आजाद हो गया हूं. इसिलए आज ज्ञान की बातें कर पा रहा हूं.