जब भगवान कृष्ण ने पूरी मानवजाति के लिए बता दिए ये गुण और अवगुण

कोई भी अवतार हो, उन्होंने हमेशा लोगों को सत्य की राह दिखाई है और यह भी सिखाया है कि उनकी जीवनशैली कैसी हो। फिर यदि भगवान श्रीकृष्ण की बात करें तो उन्होंने महाभारत युद्ध के दौरान जो गीता का उपदेश दिया है, उसमें न केवल जीवन की परेशानियों से बचने का रास्ता दिखाया है बल्कि यह भी स्पष्ट तौर पर बता दिया है कि आप केवल कर्म कीजिए फल की इच्छा मत रखिए, क्योंकि फल देना ईश्वर के हाथों में है।

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महाभारत युद्ध के दौरान अपनों पर ही वार करने की दुविधा में फंसे अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने पूरी दुनिया को महत्वपूर्ण संदेश दिए हैं। अपने उपदेश में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सृष्टि के तीन प्रधान गुणों के बारे में विस्तार से बताया। ये तीन गुण हैं सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण।

अर्जुन से भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मनुष्य अपने साथ सत्व, रज और तम तीनों गुण के साथ पैदा होता है। इस जगत की रचना भी इन्हीं तीन गुणों के आधार पर की गई है। इस त्रिगुणात्मक सृष्टि में रहने वाले मनुष्य सहित समस्त जीवों में ये तीनों गुण मौजूद होते हैं। हर प्राणी के अंदर इन तीनों में से कोई एक गुण अधिक प्रभावी होता है। जिस गुण की अधिकता होती है, उस व्यक्ति या जीव का चरित्र वैसा ही बन जाता है। वैसे आधुनिक विज्ञान आज भी इस बात से अनजान है। सनातन धर्म का विश्वास है कि ये तीनों गुण सजीव, निर्जीव, स्थूल और सूक्ष्म सभी जीवों और वस्तुओं में रहते हैं। अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि यह मूल प्रकृति ही संसार की समस्त वस्तुओं को उत्पन्न करने वाली है और मैं ही ब्रह्म यानी आत्मा रूप में चेतन रूपी बीज अर्थात चैतन्यता को स्थापित करता हूं।

रजोगुण की अधिकता वाले व्यक्ति को ऐश्वर्य, ठाठ-बाट और राजपाट की लालसा रहती है। इन सबको पाने के लिए वह धन जुटाने में ही जीवन खपा देता है, क्योंकि उसका धन में ही अधिक विश्वास रहता है। तमोगुण वाले व्यक्ति आलसी और प्रमादी होते हैं। द्वेष और क्रोध जैसी नकारात्मक भावनाएं उनमें भरी होती हैं। अपनी बातें मनवाने के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। इस प्रकार तमो और रजो गुणों से हटकर सतोगुण सबसे अच्छा गुण है। इस गुण वाले व्यक्ति को सात्विक कहा गया है और ये लोग सीधे- सच्चे होते हैं।

वैसे तो हर मनुष्य के स्वभाव में तीनों गुण कुछ न कुछ मात्रा में होते ही हैं, परंतु जिस मनुष्य में जो गुण अधिक होता है उसका आचार-विचार वैसा ही हो जाता है। उसकी जैसी प्रवृति होती है वैसी ही रुचि हो जाती है और उनके अनुसार ही वह इच्छा रखता है कि उसे क्या चाहिए। इन उपदेशों में भगवान श्रीकृष्ण ने सबसे हटकर इस बात पर बल दिया है कि हमें अपनी जीवनशैली में मानवता को सबसे ऊपर रखना चाहिए।