भगवान श्रीराम के वनगमन का समय हो या फिर धनुष यज्ञ में जाने का, लेकिन इतना तय है कि जहां-जहां प्रभु श्रीराम के चरण पड़े हैं, वहां-वहां लोगों का आध्यात्मिक कल्याण अवश्य हुआ है और शांति की स्थापना हुई है। भगवान राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वनगमन करते हैं तो पहली रात तामसी नदी के तट पर बिताते हैं। इसके बाद तीनों यहीं पर राजसी पोशाकों को छोड़कर बल्कल वस्त्र (वन में पहनी जाने वाली पोशाक) पहन लेते हैं। नाव से तामसी नदी पार करने के बाद रामजी आगे बढ़ते हुए श्रंगवेरपुर तीर्थ पहुंचते हैं।
प्रयागराज से लगभग 20-22 किलोमीटर पहले श्रंगवेरपुर है, जहां उस वक्त निषादराज गुह का राज्य था। यहीं पर गंगा के तट पर भगवान श्रीराम ने केवट से गंगा पार उतारने को कहा था। इसके बाद केवट ने अपनी नाव से श्रीराम, सीता और लक्ष्मण को गंगा नदी से पार कर दिया था। श्रंगवेरपुर को वर्तमान में सिंगरौर कहा जाता है। फिलहाल यह लखनऊ रोड पर स्थित है। यह आज भी प्रयागराज के आस-पास के प्रमुख भ्रमण स्थलों में से एक है। श्रंगवेरपुर लगातार तेजी से बढ़ रहा है यद्यपि, रामायण महाकाव्य में इस स्थान की लंबाई का उल्लेख किया गया है। इस नगर का निशादराज केवट के प्रसिद्ध राज्य की राजधानी या ‘मछुआरों के राजा’ के रूप में उल्लेख किया गया है। रामायण में राम, सीता और उनके भाई लक्ष्मन का श्रंगवेरपुर पहुंचने का स्पष्ट वर्णन मिलता है।
श्रंगवेरपुर में किए गए उत्खनन कार्यों ने श्रंगी ऋषि के मंदिर का पता चला है। इस गांव का नाम ऋषि से ही मिला है। फिर भी, गांव निशादराज की राजधानी के रूप में अधिक प्रसिद्ध है। रामायण में उल्लेख है कि भगवान राम, पत्नी सीता और उनके भाई लक्ष्मण निर्वासन पर इस गांव में एक रात तक रहे। ऐसा कहा जाता है कि नाविकों ने उन्हें गंगा नदी पार करने से इनकार कर दिया था, तब निषादराज ने खुद उस स्थल का दौरा किया जहां भगवान राम इस मुद्दे को सुलझाने में लगे थे। उन्होंने गंगा पार कराने से पहले श्रीराम से उनके चरण धोने देने का आग्रह किया। इस पर राम ने अनुमति दी और इसका भी उल्लेख है कि निषादराज केवट ने गंगा जल से राम के पैरों को धोया और उनके प्रति अपनी श्रद्धा के कारण उस जल को पिया। केवट द्वारा भगवान राम के चरण पखारने का रामायण में बड़ा रोचक प्रसंग दिया गया है। इस प्रसंग पर कई भजन भी प्रचलित हैं। दरअसल, केवट ने अहिल्या उद्धार का वह दृश्य देख लिया था, जब भगवान राम की चरण रज से देवी अहिल्या पाषाण से पुन: नारी बन गई थीं। केवट को लगा था कि भगवान राम मायावी हैं और उनके चरण रखते ही कहीं उसकी नाव पाषाण की न बन जाए।
जिस स्थान पर निशादराज केवट ने भगवान श्रीराम के पैरों को धोया था, वह चिह्नित कर लिया गया है। इस घटना के आधार पर इसका नाम ‘रामचुरा’ रखा गया है। इस स्थान पर एक मंदिर भी बनाया गया है। यह जगह बहुत शांत है। इस गांव में ग्रामीणों को खुदाई में कई पुरानी दीवारें और संरचना मिली हैं। गंगा नदी के तट पर स्थित यह एक अद्भुत गांव है। हरी-भरी चार छोटी पहाड़ियां भी हैं। यहां हमेशा यात्रा करने के लिए उचित माहौल मिलता है। नदी के किनारे एक अंतिम संस्कार स्थल (श्मशान) है। कहा गया है कि जिसका भी यहां अंतिम संस्कार करते हैं उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। संभवत: यह एक बड़ा कारण है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोग अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार यहीं आकर करते हैं। इस प्रकार जहां-जहां भगवान श्रीराम ने चरण रखे हैं, वह तीर्थ क्षेत्र बनते गए। आज भी लोग उस स्थान पर पहुंचकर भगवान श्रीराम का स्मरण कर खुद को धन्य मानते हैं।