जहां जहां माता लक्ष्मी होती हैं, वहां होते हैं भगवान श्री गणेश, इनके बिना दीपावली की पूजा ही नहीं हो सकती। महालक्ष्मी पूजन के समय लक्ष्मी जी का गणेश जी के साथ वाला फोटो ही रखा जाता है। आइए, जानते हैं कि लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी का पूजन क्यों जरूरी है।
यह तो सभी जानते हैं कि गणेशजी बुद्धि के देवता है। उनकी दो पत्नियां रिद्धि – सिद्धि और दो पुत्र हैं शुभ-लाभ। लक्ष्मी जी धन की देवी हैं और गणेशजी बुद्धि व विवेक के प्रमुख देवता हैं। अतः कहा जा सकता है कि बिना विवेक के लक्ष्मी का शुभ- लाभ नहीं हो सकता। यही एक बड़ा कारण है कि दीपावली पर शुभ मुहूर्त में धन वृद्धि की कामना के साथ बुद्धि और विवेक का आशीर्वाद लिया जाता है। क्योंकि यदि धन आया और विवेक न आया तो लक्ष्मीजी का दुरुपयोग हो सकता है।
शास्त्रों में दी गई एक कथा के अनुसार भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मीजी को धन और समृद्धि की देवी माना गया है, जिसका उन्हें अभिमान हो गया था। भगवान विष्णु इस अभिमान को दूर करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने लक्ष्मी जी से कहा कि नारी तब तक पूर्ण नहीं होती है, जब तक वह मां न बन जाए। लक्ष्मीजी का कोई पुत्र नहीं था, इसलिए वे बहुत निराश हो गईं। दुखी मन से वे भगवान शिव की पत्नी देवी पार्वती के पास पहुंची और इस बारे में सहायता मांगी।
पार्वतीजी को दो पुत्र हैं, इसलिए लक्ष्मीजी ने उनसे एक पुत्र गोद देने को कहा। पार्वती जी यह जानती थीं कि लक्ष्मीजी को चंचला कहा जाता है, क्योंकि वे एक स्थान पर लंबे समय नहीं रहती हैं। इसलिए वे बच्चे की देखभाल नहीं कर पाएंगी।
यह जानते हुए भी माता पार्वती ने लक्ष्मी जी का दुख समझते हुए अपने पुत्र गणेश को उन्हें सौंप दिया। इससे लक्ष्मीजी बहुत प्रसन्न हुईं और उन्होंने वचन दिया कि वे गणेश का बहुत ध्यान रखेंगी, और कहा कि जो भी सुख और समृद्धि के लिए मेरी पूजन करते हैं उन्हें मुझसे पहले गणेश की पूजा करनी होगी, तभी मेरी पूजा संपन्न होगी। तबसे आज तक दीपावली पर लक्ष्मीजी की पूजा से पहले गणेशजी की पूजा की जाती है। इसी कारण दीपावली पूजन में लक्ष्मी जी का गणेश जी के साथ वाला फोटो रखा जाता है।
शास्त्रों में दी गई एक और कथा के अनुसार माता पार्वती ने अपने पुत्र गणेश के पूर्णानंद स्वरूप को मां लक्ष्मी को दिया था। इसके बाद माता लक्ष्मी ने अपने पुत्र को आशीर्वाद दिया कि उनकी पूजा पूर्णानंद के साथ की जाने पर जीवन में सदैव पूर्णानंद बना रहेगा । तभी से पूर्णानंद यानी श्री गणेश एवं माता लक्ष्मी की एक साथ पूजा की जाती है।
आदिकाल से ही पत्नी को ‘वामांगी’ कहा गया है। सदैव बायां स्थान पत्नी को ही दिया जाता है। अत: पूजा करते समय लक्ष्मी-गणेश को इस प्रकार स्थापित करें कि लक्ष्मी जी सदा गणेश जी के दाहिने हों, क्योंकि गणेश जी, लक्ष्मी जी के मानस पुत्र हैं। इस पूजा को लेकर यह कामना रहती है कि मां लक्ष्मी अपने प्रिय पुत्र की भांति हमारी भी सदैव रक्षा करें। हमें भी उनका स्नेह और आशीर्वाद मिलता रहे। अतः कहा जा सकता है कि भगवान विष्णु की प्रेरणा से ही माता लक्ष्मी और भगवान गणेश एक साथ विराजित किए जाते हैं।