जनकपुर से वापस आते समय इसी रास्ते से गुजरे थे भगवान श्रीराम

इस देश में हर स्थान का कोई न कोई धार्मिक महत्व ज़रूर है. हर जगह का गौरवशाली इतिहास भी है. जैसे राजस्थान को वीर योद्धाओं की धरती कहा जाता है. महाराष्ट्र मराठों की शान है. छत्रपति महाराज शिवाजी की पहचान है. उत्तरप्रदेश की धरती भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण से जुड़ी हुई है. अयोध्या और मथुरा ये दोनों ही ऐसे स्थान हैं, जहाँ स्वयं नारायण ने मानव रूप में अवतार लिया. उत्तरप्रदेश में ही और एक जगह है, जिसका नाम है कुशीनगर. कहते हैं यही कुशीनगर भगवान श्रीराम के पुत्र कुश की राजधानी थी.

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हिमालय की तराई वाले क्षेत्र में स्थित कुशीनगर का इतिहास अत्यंत ही प्राचीन व गौरवशाली है. वाल्मीकि रामायण के अनुसार यह स्थान त्रेता युग में भी इसी तरह बसा हुआ था. और यहां मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के पुत्र कुश की राजधानी थी जिसके चलते इसे कुशावती के नाम से जाना गया. पालि साहित्य के ग्रंथ त्रिपिटक के अनुसार एक और बात इस स्थान के लिए कही जाती है. बौद्ध काल में यह स्थान मल्ल राजाओं की राजधानी हुआ करता था. उस समय इसे कुशीनारा के नाम से जाना जाता था. कहा जाता है भगवान बुद्ध ने कुशीनगर में ही अपना अंतिम उपदेश देने के बाद महापरिनिर्माण को प्राप्त किया था. कुशीनगर जनपद का जिला मुख्यालय पडरौना है.

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इसी पडरौना के बारे में मान्यता है कि, भगवान राम विवाह के उपरांत अपनी पत्नी माता सीता व और अपने सगे-संबंधियों के साथ जनकपुर से वापस लौटते हुए इसी रास्ते से अयोध्या पहुंचे थे. जनकपुर से अयोध्या लौटने के लिए भगवान राम और उनके सभी सगे सम्बन्धियों ने पडरौना के ही पूर्व में लगभग 10 किलोमीटर दूरी पर वहां से बहकर जाने वाली बांसी नदी को पार किया था. आज भी बांसी नदी के इस स्थान को रामघाट के नाम से जाना जाता है. हर साल यहां भव्य मेला लगता है जहाँ उत्तर प्रदेश और बिहार के लाखों श्रद्धालु आते हैं.