जिस बाली की एक टक्कर से बड़े बड़े पहाड़ धूल में मिल जाते थे आज वही पहाड़ जैसा बाली धूल में पड़ा हुआ है। अभिमान और अधर्म के कारण उसको इतने कष्ट झेलने पड़े और नष्ट होना पड़ा।
धन-संपत्ति, बल वैभव चाहे जितना हो जाए परन्तु उसका अभिमान नहीं करना चाहिए और मद में चूर होकर अत्याचार और अधर्म कभी नहीं करना चाहिए। जो बाली पलक झपकते ही पूरी धरती की परिक्रमा कर लेता था वही आज चिता पर चेतनाहीन पड़ा है।
समय या काल बहुत बलवान है इसलिए जीवन का हर क्षण अच्छे कार्यों में व्यतीत करना चाहिए क्योंकि समय हमें कब क्या दिखा दे कुछ कहा नहीं जा सकता।
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जय श्रीराम🙏#goodmorning
Gepostet von Arun Govil am Donnerstag, 14. Mai 2020
स्वयं को बाली के वध का कारण मानकर सुग्रीव बहुत दुखी होते हैं और राजा ना बनकर तपस्या करके अपने पाप का प्रायश्चित करना चाहते हैं। तो रामजी उन्हें समझाते हैं– मित्र ये प्रायश्चित की भावना इस बात की निशानी है कि तुम्हारा हृदय एक सज्जन पुरुष का हृदय है। राम जी के बहुत समझाने के बाद भी सुग्रीव राजा बनने को तैयार नहीं होते और कहते हैं कि प्रभु सन्यासी बनने की इच्छा रखने वाले को आप सत्ता संभालने के लिए कह रहे हैं?
सुग्रीव को उत्तर देते हुए राम जी ने जो भी कहा उसे बड़े ध्यान से सुनना और समझना चाहिए– सन्यासी से अच्छा राजा और कौन हो सकता है? जिसे सिंहासन और सत्ता का लोभ ना हो वही सच्चा न्याय कर सकता है। जिसे निजी विलास और काम में आसक्ति नहीं होगी वही एक तपस्वी की भांति दिन-रात जन सेवा के कार्य में संलग्न रहेगा। सन्यासी की भांति जिसका ना कोई अपना होगा ना ही पराया होगा वही मोह ममता को त्याग कर ईश्वर की भांति अपनी सारी प्रजा से एक जैसा बर्ताव करेगा। इसीलिए राजा को ईश्वर ही माना गया है।
सौभाग्य से आज भारतवर्ष को ऐसा ही आदर्श राजा नरेंद्र मोदी के रूप में प्राप्त हुआ है और देश के कुछ प्रदेशों में योगी आदित्यनाथ जैसे शासक, आदर्श राजाओं के इसी गुण को प्रमाणित कर रहे हैं।
रामायण की यह सीख किसी देश, धर्म या संप्रदाय के लिए नहीं बल्कि सारे संसार के लिए, सारे मानव समाज के लिए है।
स्वार्थ, ईर्ष्या, बदले की भावना आदि से ऊपर उठकर आज हमें रामायण की इन शिक्षाओं पर बहुत गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है।
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किष्किंधा के सिंहासन पर सुग्रीव के राज्याभिषेक के बाद रामजी ने उन्हें सलाह दी कि अपने विश्वस्त मंत्रियों के साथ साथ बाली के विश्वसनीय मंत्रियों और राज्य के शुभचिंतकों, बुद्धिजीवियों को भी अपने मंत्रिमंडल में अवश्य रखना। राम का ये आदर्श हर देश, हर काल, हर समाज के लिए बहुत उपयोगी है।
सत्ता पक्ष में रहने का मतलब ये बिल्कुल नहीं होना चाहिए कि हम अपने ही लोगों को सारे पदों पर बिठा दें। उचित यही है कि हर योग्य व्यक्ति को सत्ता में स्थान मिले जिससे राष्ट्र का उत्थान हो सके। आज की राजनीति में रामायण की इस महत्वपूर्ण सीख की बहुत बड़ी आवश्यकता है।
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सुग्रीव के राजा बनते ही पहला महत्वपूर्ण काम था सीता जी की खोज परंतु बरसात का मौसम आ जाने के कारण राम जी ने वर्षा ऋतु के चार महीने प्रतीक्षा करने का निर्णय लिया।
उन्होंने कहा-वर्षा का आरंभ हो चुका है चारों ओर नदी नाले चढ़े हुए हैं यातायात संभव नहीं इसीलिए चौमासे में सारी यात्राएं स्थगित कर देनी चाहिए। राम जी के ये विचार जितने प्रासंगिक हैं, व्यावहारिक हैं उतने ही वैज्ञानिक भी हैं क्योंकि बरसात के समय यातायात की कठिनाइयां तो होती ही हैं साथ ही वातावरण में संक्रमण बहुत ज्यादा होता है जिससे बीमारियों के भी बहुत खतरे होते हैं। इस प्रकार रामायण के हर प्रसंग में कोई ना कोई उपयोगी में सीख समाई हुई है।
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वर्षा ऋतु बीत जाने के बाद भी सुग्रीव ने सीता जी की खोज का कोई प्रयास प्रारंभ नहीं किया। तो राम जी ने लक्ष्मण जी से सुग्रीव को समझाने जाने के लिए कहा। सुग्रीव की इस लापरवाही पर लक्ष्मण जी का क्रोध बहुत ज्यादा हो गया और उन्होंने सुग्रीव को मारने की बात कह दी
इस पर राम जी ने बड़े संयम के साथ लक्ष्मण जी को समझाया–लक्ष्मण इस समय हमारे मन में जो उद्वेग उत्पन्न हो रहा है वो हमारे अपने कार्य सिद्धि में हो रहे विलंब के कारण हमारी निराशा की हीन भावना मात्र है। जाओ समय और स्थिति के अनुसार संयम से काम लेना।
मतलब ये कि कभी-कभी जब हमारा अपना सोचा या अपना चाहा नहीं होता तो बुरा लगना और क्रोध आना स्वाभाविक है परंतु ऐसे में भी हमें अपना विवेक और संयम नहीं खोना चाहिए।