सनातन धर्म में पूजा-आराधना, साधना व्रत और तपस्या का विशेष स्थान है। हमारे भगवान और देवी- देवता हमारी सदैव रक्षा करते हैं और संकट से भी वही उबारते हैं। इसी प्रकार देवी-देवताओं का पूजन करने से दुख-दर्द तो दूर होते ही हैं, साथ ही शांति भी मिलती है। इसी कारण हमारी संस्कृति में पुराने समय से ही पूजन की परंपरा चली आ रही है। जिन घरों में हर रोज पूजा की जाती है, वहां का वातावरण पवित्र और सकारात्मक रहता है। सुख-शांति और सम्पन्नता आती है और गरीबी दूर रहती है। वैज्ञानिक नजरिये से दीपक और धूप के धुएं से स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाले सूक्ष्म कीटाणु भी खत्म हो जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार पूजन के लिए कई आवश्यक नियम बताए गए हैं, जिनका पालन करते हुए पूजा करने पर अच्छे फल मिलते हैं।
पूजन में इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि पूजा के बीच में दीपक न बुझे। ऐसा होने पर पूजा का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है। रोज घी का दीपक घर में जलाने से कई वास्तु दोष भी दूर हो जाते हैं। दीपक हमेशा भगवान की प्रतिमा के ठीक सामने लगाना चाहिए। कभी-कभी भगवान की प्रतिमा के सामने दीपक न लगाकर इधर-उधर लगा दिया जाता है, यह सही नहीं है। घी के दीपक के लिए सफेद रुई की बत्ती उपयोग की जानी चाहिए, जबकि तेल के दीपक के लिए लाल धागे की बत्ती श्रेष्ठ बताई गई है। यह भी ध्यान रखें कि पूजन में कभी भी खंडित दीपक नहीं जलाना चाहिए। धार्मिक कार्यों में खंडित सामग्री शुभ नहीं मानी जाती है।
किसी भी भगवान की पूजन में उनका मंत्रों से आवाहन करना चाहिए। उनका ध्यान करना, आसन देना, स्नान करवाना, धूप-दीप जलाना, अक्षत (चावल), कुमकुम, चंदन, फूल, प्रसाद आदि होना चाहिए। पूजन में भगवान और देवी-देवताओं को हार-फूल, पत्तियां आदि अर्पित करने से पहले एक बार साफ पानी से उन्हें धो लेना चाहिए। इसी तरह सभी प्रकार की पूजा में चावल चढ़ाने का विशेष महत्व है। पूजन के लिए ऐसे चावल का उपयोग करना चाहिए जो टूटे हुए न हो। चावल चढ़ाने से पहले इन्हें हल्दी से पीला करना बहुत शुभ होता है। पूजन में पान का पत्ता भी रखना चाहिए और इस पत्ते के ऊपर इलाइची, लौंग, गुलकंद आदि रखकर अर्पित करना चाहिए। बना हुआ पान का बीड़ा भी चढ़ाना उचित रहता है।
जब भी कोई विशेष पूजा हो तो अपने इष्टदेव के साथ ही स्वस्तिक, कलश, नवग्रह देवता, पंच लोकपाल, षोडश मातृका, सप्त मातृका का पूजन भी करना चाहिए। इन सभी की पूरी जानकारी किसी पुरोहित से प्राप्त की जा सकती है। विशेष पूजन पुरोहित की मदद से करनी चाहिए, ताकि पूजा विधिवत हो सके। क्या आप यह जानते हैं कि तुलसी की पत्तियां 11 दिनों तक बासी नहीं मानी जाती। इसकी पत्तियों पर हर दिन जल छिड़ककर भगवान को अर्पित की जा सकती है। शिवजी को बिल्व पत्र अवश्य चढ़ाएं और किसी भी पूजा में मनोकामना की सफलता के लिए अपनी इच्छा के अनुसार भगवान के समक्ष दक्षिणा अवश्य चढ़ानी चाहिए, दान करना चाहिए। दक्षिणा अर्पित करते समय अपने दोषों को छोड़ने का संकल्प लेना चाहिए। दोषों को जल्दी से जल्दी छोड़ने पर मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होंगी। इसी प्रकार भगवान सूर्य की 7, श्रीगणेश की 3, विष्णुजी की 4 और शिवजी की 1/2 परिक्रमा करनी चाहिए। यह भी ध्यान रखें कि भगवान शिव को हल्दी नहीं चढ़ाना चाहिए और न ही शंख से जल चढ़ाना चाहिए।
यदि आप भगवान विष्णु की पूजा कर रहे हों तो उन्हें प्रसन्न करने के लिए पीले रंग का रेशमी कपड़ा चढ़ाना चाहिए। देवी दुर्गा, सूर्यदेव व श्रीगणेश को प्रसन्न करने के लिए लाल रंग का, भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए सफेद वस्त्र अर्पित करना चाहिए। किसी भी प्रकार के पूजन में कुल देवता, कुल देवी, घर के वास्तु देवता, ग्राम देवता आदि का ध्यान कर उनका भी आवाहन-पूजन करना चाहिए। पूजन में हम जिस आसन पर बैठते हैं, उसे पैरों से इधर-उधर खिसकाना उचित नहीं माना जाता है। जरूरी हो तो आसन को हाथों से खिसकाना चाहिए। सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु ये पंचदेव कहलाते हैं, इनकी पूजा सभी कार्यों में अनिवार्य रूप से की जानी चाहिए। पूजन करते समय इन पंचदेव का ध्यान करना चाहिए। इससे लक्ष्मीजी की कृपा प्राप्त होती है और घर में समृद्धि आती है। वैसे तो पूजन आस्था का विषय है, लेकिन यह विधिवत होनी चाहिए, अन्यथा आपकी भक्ति का उचित फल मिलना मुश्किल होता है। कहा भी जाता है कि भगवान भाव के भूखे होते हैं, यदि बिना भक्ति-भाव के पूजन सामग्री अर्पित की जाती है तो वह बेकार जाती है। इसीलिए भगवान की पूजा पूर्ण भक्तिभाव से करनी चाहिए, तभी पूजा सार्थक होती है.