महाभारत का युद्ध कई दिनों तक चला था, शुरू में तो कौरवों का पक्ष बहुत भारी रहा, बड़े बड़े योद्धाओं और कौरवों की विशाल सेना के सामने पांडव बहुत कम थे, और उनके भी एक एक करके कई शूरवीर रणभूमि में धराशायी होते गए, लेकिन उसके बाद पांडवों का पलड़ा भारी हो गया. खासकर भीष्म पितामह और गुरु द्रोण के पश्चात तो उनके पास कोई योद्धा ही नहीं बचा. लेकिन इस युद्ध के कुछ ऐसे भी पहलू हैं, जिनके बारे में कम ही लोगों को पता है. असल में कौरवों का एक भाई जिसका नाम युयुत्स था, उसने महाभारत के युद्ध से ठीक पहले कौरवों की सेना को छोड़ दिया था.
महाराज धृतराष्ट्र और गांधारी के 100 पुत्र थे जो कौरव वंश से थे. लेकिन कहा जाता है एक और पुत्र भी था धृतराष्ट्र का, जिसकी माता एक दासी थी. और इस दासी पुत्र का नाम था युयुत्स. लेकिन धृतराष्ट्र का पुत्र होने के नाते वह भी कौरव ही था. और वो धर्म के साथ था. उसने कभी अन्याय का साथ नहीं दिया. जब महाराज धृतराष्ट्र की ही सभा में द्रोपदी का चीरहरण हो रहा था तो युयुत्स ने इस बात का विरोध किया था.
दुर्योधन और दुशासन की मानसिकता का बिलकुल भी पक्षधर नहीं था वो. कहा जाता है कौरवों की नीति उसे कभी अच्छी नहीं लगी. और जब महाभारत का युद्ध शुरू हुआ तो रणभूमि के बीच में खड़े होकर कौरव सेना से युधिष्ठिर ने सीधा सवाल किया था कि, क्या शत्रुओं की सेना का कोई भी वीर योद्धा पांडवों की तरफ से युद्ध करना चाहता है? बस यही बात सुनकर युयुत्स कौरवों का साथ छोड़कर पांडवों के साथ खड़ा हो गया. और युधिष्ठिर ने भी युयुत्स को कौरवों से लड़ने के लिए उसे सीधे रणभूमि में नहीं भेजा था बल्कि, उसे पांडवों के वीर योद्धाओं के लिए हथियारों की आपूर्ति और व्यवस्था देखने के लिए नियुक्त किया था. और युद्ध के बाद कौरवों की तरफ से यही एक मात्र कौरव था जो जीवित बचा था.