महाज्ञानी, पराक्रमी और बलशाली रावण वेदों का जानकार था। वह धरती पर मौजूद सबसे बुद्धिमान व्यक्तियों में से एक था। हालांकि उसके अहंकार के कारण उसका अंत हुआ। रावण भगवान शिव का परम भक्त था और उसे यह वरदान था कि कोई भी देवी-देवता का उसका अंत नहीं सकता। यही कारण है कि रावण का वध करने के लिए भगवान विष्णु को मानव रूप में अवतार लेना पड़ा। भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्रीराम ने रावण की नाभि में तीर मारकर उसका अंत किया। रावण के अंत से पहले भगवान श्रीराम और रावण की सेना के बीच कई दिनों तक युद्ध चला। धर्म और अधर्म के बीच हुआ यह युद्ध कितने दिनों तक चला, इस बार में बहुत कम लोगों को जानकारी है।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम और रावण की सेना के बीच 84 दिनों तक युद्ध लड़ा गया। युद्ध में सफलता के लिए भगवान श्रीराम ने शक्ति की उपासना की थी। इसके बाद लगातार 9 दिनों तक युद्ध के बाद दसवें दिन रावण का अंत कर दिया। इसलिए हिन्दू धर्म में नौ दिनों तक शक्ति की उपासना की जाती है और दसवें दिन दशहरा मनाया जाता है। रामायण के अनुसार भगवान श्रीराम और रावण के बीच लगातार 8 दिनों सीधे युद्ध हुआ था। अश्विन शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को दोनों के बीच शुरू हुआ संग्राम दशमी को रावण वध के साथ समाप्त हुआ। रावण का अंत करने के बाद भगवान श्रीराम को वापस अयोध्या पहुंचने में करीब 20 दिन लगे थे।
शास्त्रों के अनुसार रावण की सेना में करोड़ो लोग थे, बावजूद इसके भगवान श्रीराम और उनकी वानर सेना ने बहुत पराक्रम के साथ युद्ध किया, और श्रीराम ने रावण का अंत कर दिया। सिर्फ रावण ही नहीं बल्कि उसकी सेना में ऐसे कई पराक्रमी योद्धा थे, जिन्हें किसी मनुष्य के लिए हराना असंभव था। इसलिए भगवान विष्णु के अवतार के साथ-साथ भगवान शिव और अन्य देवताओं ने भी अवतार लिए थें। श्रीराम-रावण के युद्ध में रावण के चार भाइयों कुम्भकर्ण, खर, दूषण और अहिरावण ने हिस्सा लिया था। इनमें से अहिरावण का अंत हनुमानजी ने किया था जबकि बाकी तीन भाइयों का अंत श्रीराम के हाथों हुआ।
युद्ध में रावण के सात शूरवीर पुत्र भी उतरे थे। इनमें से मेघनाद, प्रहस्त और अतिकाय का अंत लक्ष्मणजी ने किया जबकि नरान्तक, देवान्तक और अक्षयकुमार का अंत हनुमानजी के हाथों हुआ। रावण के एक पुत्र त्रिशिरा का अंत श्रीराम के हाथों हुआ।