जन्म होते ही कई लोगों को खा गया था कुम्भकरण

कुम्भकरण लंकापति रावण का ऐसा भाई था जिसे पता था कि, प्रभु श्रीराम साक्षात नारायण का अवतार हैं. और उसने रावण को समझाया भी था, वो जो कर रहा है वो गलत है. फिर भी रावण ने उसकी बात नहीं मानी. और इसका नतीजा जो हुआ वो सब जानते हैं. कुम्भकरण के बारे में यह भी कहा जाता है कि जब उसका जन्म हुआ तो वह कई लोगों को खा गया था. इसके बाद सभी देवता बहुत भयभीत हो गए और उन्होंने इंद्र से इसके लिए मदद मांगी. इस पर जब इंद्र ने कुम्भकरण से युद्ध किया तो कुम्भकरण जीत गया. कुंभ अर्थात घड़ा और कर्ण अर्थात कान, बचपन से ही बड़े कान होने के कारण उसका नाम कुम्भकरण रखा गया था. वह विभीषण और सूपर्णखा का बड़ा भाई था। बचपन से ही उसमें बहुत बल था. एक बार में वह जितना भोजन करता था, उतना कई नगरों के प्राणी मिलकर भी नहीं कर सकते थे.

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कुम्भकरण का विवाह वेरोचन की बेटी व्रजज्वाला से हुआ था. इसके अलावा करकटी भी उसकी पत्नी थी. इन दोनों से उसे तीन बच्चे थे. करकटी राक्षसी सह्याद्री की राजकुमारी थी, जिस पर मुग्ध होकर कुम्भकरण से उससे शादी कर ली थी, जिससे भीमासुर का जन्म हुआ था. कुम्भकरण का एक तीसरा विवाह भी हुआ था. ये विवाह कुंभपुर के महोदर नामक राजा की बेटी तडित्माला से हुआ था। व्रजज्वाला से दो बेटे थे, उनके नाम कुंभ और निकुंभ थे. निकुंभ काफी शक्तिशाली था। उसे कुबेर ने निगरानी का खास दायित्व सौंप रखा था.

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राम-रावण के युद्ध के समय जब कुम्भकरण को बलपूर्वक जगाया गया और उसे कारण बताया गया तो उसने बड़े भाई रावण को खूब खरी-खरी सुनाई और कहा कि उसने गलत काम किया है. इसके बाद भी उसने युद्ध में भाई का साथ दिया. वह वानर सेना के कई योद्धाओं पर भारी पड़ा था, अंतत: भगवान श्रीराम ने उसका अंत कर उसे मोक्ष प्रदान किया.