जब भगवान श्रीगणेश ने महर्षि वेदव्यास के सामने महाभारत लिखने के लिए रखी शर्त

धार्मिक शास्त्रों में विघ्नहर्ता भगवान श्रीगणेश को प्रथम पूज्य माना गया है। यही कारण है कि हिंदू धर्म में किसी भी शुभ काम को करने से पहले भगवान श्रीगणेश की पूजा की जाती है। भारत में भगवान श्रीगणेश के कई ऐतिहासिक मंदिर हैं। इनमें मुंबई का सिद्धिविनायक मंदिर, रायगढ़ का श्री वरदविनायक, इंदौर का खजराना गणेश मंदिर और जयपुर का मोती डूंगरी गणेश मंदिर सहित अन्य मंदिरों का नाम आता है। देवों की भूमि कहे जाने वाले उतराखंड में भी भगवान श्रीगणेश का एक ऐसा ही ऐतिहासिक स्थल है, जिसको लेकर मान्यता है कि भगवान श्रीगणेश ने इस स्थान पर बैठकर ही महाभारत जैसा महान, धार्मिक, पौराणिक व ऐतिहासिक ग्रंथ लिखा था।

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दरअसल प्रसिद्ध बद्रीनाथ धाम से लगभग 5 किलोमीटर दूर भारत और तिब्बत की सीमा पर स्थित भारत का आखिरी गांव माणा है। इस गांव में व्यास पोथी नाम की जगह है। यहां पर दो गुफा मौजूद हैं। इनमें से एक गुफा को व्यास गुफा जबकि दूसरी गुफा को गणेश गुफा कहा जाता है। श्रद्धालुओं का मानना है कि महर्षि वेद व्यास और भगवान श्रीगणेश ने मिलकर इसी स्थान पर महाभारत की रचना की थी। व्यास गुफा में महर्षि वेद व्यास का मंदिर बना हुआ है जबकि गणेश गुफा में भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा स्थापित है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि इन गुफाओं में आज भी महर्षि वेद व्यास और भगवान श्रीगणेश रहते हैं। बद्रीनाथ धाम आने वाले कई श्रद्धालु गणेश गुफा के दर्शन करने के लिए भी पहुंचते हैं। इस स्थान के प्रति क्षेत्र के लोगों की गहरी आस्था है।

हिंदू धर्म से जुड़े धार्मिक शास्त्रों में भी इस स्थान का वर्णन किया गया है। शास्त्रों के अनुसार महाभारत की रचना करने जैसा शुभ कार्य करने से पहले महर्षि वेद व्यास ने ना सिर्फ भगवान श्रीगणेश को याद किया बल्कि उनसे महाभारत लिखने का अनुरोध भी किया। भगवान श्रीगणेश ने भी महर्षि वेद व्यास के अनुरोध को सहर्ष स्वीकार कर लिया लेकिन साथ ही उनके सामने एक शर्त भी रख दी। भगवान श्रीगणेश ने महर्षि वेद व्यास से कहा कि मैं महाभारत लिखने के लिए तैयार हूं, लेकिन आपको यह कथा लगातार सुनाना होगी। अगर आप बीच में कहीं भी रुके तो मैं लेखन का कार्य छोड़ दूंगा। इस पर महर्षि वेद व्यास ने उनकी शर्त स्वीकार करते हुए बदले में एक शर्त भी रख दी कि वह बिना वाक्य को समझे उसे नहीं लिखेंगे। इससे भगवान श्रीगणेश जब तक वाक्य को समझते तब तक महर्षि को सोचने का अवसर मिल जाता। इस तरह भगवान श्रीगणेश ने एक छोटी सी गुफा में बैठकर वेदव्यास के मुख से निकली वाणी और वैदिक ज्ञान को सुनकर महाभारत लिखी।