महाभारत के युद्ध में जब अर्जुन और कर्ण का युद्ध हो रहा था, तो उसी समय महानाग अश्वसेन, अर्जुन से अपने पूर्वजों और नागराज तक्षक के समस्त परिवार की मौत का का बदला लेने के लिए कर्ण के पास पहुँच गया, कर्ण के तरकश में कैद बाण से लिपट गया. पर भगवान श्रीकृष्ण की चतुराई से अर्जुन की जान भी बच गई, और अर्जुन के हाथों ही अश्वसेन मारा गया. दरअसल अपने अज्ञातवास के दौरान पांडव जब खांडवप्रस्थ के जंगलों में अपन समय व्यतीत कर रहे थे, तभी निजी दुश्मनी के चलते अश्वसेन ने हमला कर दिया, और भगवान कृष्ण के कहने पर अर्जुन ने जंगल में आग लगा दी, और इस आग में नागराज तक्षक का पूरा परिवार मारा गया. असल में नागों का समस्त कुल एक ही है, इसलिए अर्जुन से बदला तो सभी नागों में कोई भी ले सकता था, लेकिन केवल अश्वसेन के कुरुक्षेत्र में पहुँचने के पीछे भी बड़ा कारण है.
यह स्तोत्र पढ़िए और समझिए
अनंत, वासुकी, शेषं, पद्मनाभं च कम्वलं
शंखपालं, धृतराष्ट्रकंच, तक्षकं, कालियं तथा
एतानि नवनामानि नागानाम् च महात्मना
सायंकाले पठेन्नित्यम् प्रात:काले विशेषत:
तस्य विषभयं नास्ति, सर्वत्र विजयी भवेत् ।
अनन्त वासुकी शेष पद्मनाभ और कम्बल नाग तथा शंखपाल, धृतराष्ट्र तक्षक और कालिया इन नौ नागों का महत्व इतना है कि विशेषत सुबह और शाम को इन नामों का पाठ करने से विष भय नहीं होता और पाठ करने वाला सर्वत्र विजय प्राप्त करता है.
इन नव नागों में पहले चार दैवीय नाग हैं अर्थात यह विष्णु और शिव की सेवा में नियुक्त हैं. अनंत तथा शेष नाग खुद विष्णु जी का अवतार हैं और उनकी सेवा में है. कम्बल नाग गणेश जी का कमर बन्द है वहीं वासुकी नाग शिवजी के गले का कंठहार हैं. इनमें से कालिया नाग को खुद श्री कृष्ण ने अपने बाल्यकाल में अनुग्रहित कर अपनी सेवा में लिया था इसलिए श्री कृष्ण कालिया के भी स्वामी थे. और शंखपाल महालक्ष्मी और कुबेर के खजाने की रक्षा करता है. बचे धृतराष्ट्र तक्षक और कालिया बचे तक्षक और धृतराष्ट्र , तो तक्षक की अर्जुन से निजी दुश्मनी थी उसका कुल और राज्य को अर्जुन ने खांडव वन में दहन किया था किन्तु एक तो अर्जुन के रथ पर स्वयं श्री कृष्ण सवार थे अर्जुन को श्रीकृष्ण का समर्थन तथा आशीर्वाद प्राप्त था दूसरे अर्जुन देवराज इन्द्र का पुत्र था और तक्षक देवराज का मित्र था तो इस अवसर पर उसने खुद जाना उचित नहीं समझा, वह जाता तो श्री कृष्ण उसका अंत कर देते. लिहाजा उसने अपने कुल के अन्य नाग अश्वसेन को भेजा जो अर्जुन से बदला लेने का मौका ढूंढ रहा था.
यदि तक्षक अपने कुल से न जाता तो स्वयं धृतराष्ट्र को उतरना पड़ता किन्तु महानाग धृतराष्ट्र ने ही कुरुकुल में महाराज धृतराष्ट्र के रूप में जन्म लिया था. महाभारत का युद्ध महाराज धृतराष्ट्र की महत्वाकांक्षा के लिए ही लड़ा जा रहा था. कोई भी राजा खुद युद्ध में उतरने से पहले अपने सेनापति को भेजता है यही हुआ और अश्वसेन को युद्ध में भेजा गया.
अश्वसेन यह सुन कर अपना बदला पूरा करने की मंशा से अर्जुन की और उड़ चला , श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सावधान किया और आदेश दिया कि इसके प्राण हर लें.
अर्जुन को खांडव वन जलाने के पाप से मुक्ति नहीं मिली तो वह कलंक उसके पोते परीक्षित पर चला गया. कहते हैं परीक्षित को खुद तक्षक नाग ने आ कर डंसा था. तक्षक नाग ने इसलिए डंसा क्योंकि इसके पीछे श्री कृष्ण की ही इच्छा थी. अर्जुन और अर्जुन के कुल को जिस कारण श्री कृष्ण ने ब्रह्मास्त्र और नागास्त्र से बचाया वह पूरा हो चुका था, इसलिए यह श्री कृष्ण की ही इच्छा थी कि तक्षक अपना बदला पूरा करे.