दुर्योधन महाभारत का वो किरदार था, जिसके आस पास पूरी कहानी रची गई, या फिर ये कह सकते हैं, महाभारत होने का मुख्य कारण ही दुर्योधन था. महाराज धृतराष्ट्र और महारानी गांधारी का पुत्र दुर्योधन बहुत बलशाली था. लेकिन उसने सदैव अपने बल का गलत प्रयोग किया. दरअसल पांडव और कौरव वैसे तो चचेरे भाई थे, और पांडवों को सही समय पर उनके अधिकार मिलते तो कुल मिलाकर बहुत संपत्ति राज्य, धन धान्य सबकुछ दोनों के पास होते. लेकिन बात यहाँ नीयत की थी. कौरवों की तरफ से धृतराष्ट्र ने पांडवों से कह दिया था था कि, वो उन्हें सुई की नोंक जितनी जगह भी नहीं देंगे. जबकि पांडवों ने उससे अपने लिए सिर्फ पांच गाँव मांगे थे.
कौरवों के ऊपर उनके मामा शकुनी का बेहद प्रभाव था. और शकुनी किसी भी तरह ये नहीं चाहता था कि, पांडवों को उस राज्य में हिस्सा मिले. और उसके बाद उसने ये भी कह दिया था कि, पांडव यदि चाहें तो उनके साथ चौपड़ के खेल में उन्हें हराकर राज्य वापस ले सकते हैं. ये भी एक सोची समझी साजिश थी, क्योंकि शकुनी को चौपड़ के खेल में महारत हासिल थी. जिसकी वजह से पांडव सब कुछ हार गए. और उसके बाद भरी सभा में पांडवों का और उनकी पत्नी द्रोपदी का जो अपमान हुआ, महाभारत की शुरुआत वहीँ से हो गई थी. महाबली भीम ने उसी समय वचन ले लिया था कि, वो कौरवों को उनके किए का दंड अवश्य देंगे. उस सभा में बड़े बड़े दिग्गज थे. यहाँ तक कि, भीष्म पितामह ने भी सबका अपमान होते हुए देखा, और कुछ नहीं कहा. जिसका नतीजा ये हुआ कि, कौरवों के समूल वंश के साथ भीष्म पितामह, गुरु द्रोण और महारथी कर्ण जैसे योद्धाओं ने भी धर्म और अधर्म की लड़ाई में अपना जीवन गँवा दिया.
इसलिए कहा जाता है, समय और स्थिति कभी भी बदल सकती है, अत: कभी किसी का अपमान ना करें, और ना ही किसी को कमजोर समझें. आप शक्तिशाली हो सकते हैं. पर समय आपसे अधिक शक्तिशाली है.